Sunday, October 6, 2024

अंधेरी रात का साया: पुराने घर की रहस्यमयी दास्तान

अंधेरी रात का साया: पुराने घर की रहस्यमयी दास्तान

बारिश की रात थी। तेज़ हवाएँ पेड़ों को झुका रही थीं। एक पुराने, जर्जर हवेली में, अकेले रहता था एक बुज़ुर्ग आदमी, जिसका नाम था बाबूलाल सिंह। वो कहानियों का शौकीन था, खासकर डरावनी।

एक रात, तूफ़ान इतना ज़ोरदार था कि बिजली बार-बार जा रही थी। बाबूलाल ने एक लालटेन जलाई और अपनी पुस्तकालय की ओर बढ़ा। वहाँ, एक पुस्तक थी, जिसके बारे में कहते थे कि वो शापित है। जिज्ञासा ने उसे उस किताब की ओर खींचा।

किताब खोलते ही, एक अजीब सी ठंडक ने उसे घेर लिया। लालटेन की रोशनी में, किताब के पन्ने ख़ुद-ब-ख़ुद पलटने लगे। उसमें लिखी कहानी ने बाबूलाल की रूह तक कंपा दी।

अंधेरी रात का साया

कहानी एक ऐसे घर की थी, जो रात के अंधेरे में गायब हो जाता था। उस घर में रहने वाले लोग कभी वापस नहीं आते थे।

अचानक, लालटेन बुझ गई। कमरे में अंधेरा छा गया। बाबूलाल ने डर के मारे चीख़ना चाहा, लेकिन आवाज़ नहीं निकली। उसे लगा, जैसे कोई उसे देख रहा है, अंधेरे में से।

फिर, धीरे-धीरे, खिड़की से हवा का एक झोंका आया। वो झोंका कुछ और भी लाया था - एक साया। वो साया बढ़ता गया, और बाबूलाल के पास आता गया।

बाबूलाल की आँखें पूरी तरह खुल गईं। वो बिस्तर पर था, पसीने से तर-ब-तर। बाहर, तूफ़ान थम चुका था, और सूरज की पहली किरणें कमरे में आ रही थीं।

क्या ये सपना था, या कुछ और? बाबूलाल को नहीं पता था। लेकिन एक बात पक्की थी, वो अब कभी भी रात के अंधेरे से नहीं डरेगा, बल्कि उससे सावधान रहेगा।

फिर एक और रात को, बारिश फिर शुरू हुई। बाबूलाल ने सोने की कोशिश की, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। तभी, उसे एक धीमी सी खिड़की खुलने की आवाज़ सुनाई दी। डर का साया फिर से उस पर छा गया। धीरे-धीरे, वो उठा और खिड़की की ओर बढ़ा।

खिड़की से बाहर झाँकते ही, उसकी सांसें रुक सी गईं। बारिश की बूंदों के बीच, एक काली आकृति खड़ी थी। वो वही साया था, जो उसे सपने में दिखा था। उसका चेहरा नहीं था, बस दो खाली आँखों की जगह दो काले गड्ढे थे।

बाबूलाल की चीख दब गई। वो पीछे हटा, और दरवाज़े की ओर दौड़ा। लेकिन दरवाज़ा बंद था। वो घबरा गया, और फिर से खिड़की की ओर देखा। साया अब और ज़्यादा पास था।

अचानक, बिजली चमकी। उस चमक में, बाबूलाल ने देखा कि साया उसके कमरे में आ रहा है। वो भागने लगा, लेकिन साया उससे तेज़ था।

फिर, सब कुछ अंधेरा हो गया।

सुबह, जब सूरज की रोशनी कमरे में आई, तो बाबूलाल बिस्तर पर पड़ा था, बेहोश। उसके हाथों में वो शापित किताब थी, और उसका चेहरा... उसका चेहरा भी वैसा ही था, जैसा उसने साये का देखा था - बिना चेहरे का, सिर्फ दो काले गड्ढे।

क्या ये सपना था, या सच? अब बाबूलाल को भी नहीं पता था। लेकिन एक बात पक्की थी, इस हवेली में अब वो अकेला नहीं था। और वो साया, वो अंधेरी रात का साया, हमेशा उसके साथ रहेगा।

बाबूलाल सिंह की त्रासदी

बाबूलाल सिंह उस रात के बाद कभी पहले जैसा नहीं रहा। वो एक खोल बन गया था, एक खालीपन जिसने उसकी आत्मा को घेर लिया था। हवेली, जो कभी उसका सुरक्षित ठिकाना थी, अब एक जेल बन गई थी। दिन के उजाले में भी, अंधेरे का साया उसका पीछा करता था।

वो डॉक्टरों के पास गया, मनोवैज्ञानिकों के पास, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। दवाइयाँ उसे नींद तो देती थीं, लेकिन सपने में वो वही साया देखता था, वो खाली आँखें जो उसे घूर रही होती थीं।

गाँव वाले उससे दूर रहने लगे। वो उसे एक भूत देखते थे, एक जिंदा लाश। अकेलापन और डर ने उसे और भी कमज़ोर कर दिया।

एक सर्दी की रात, हवेली में आग लग गई। आग ने हवेली को खा लिया, लेकिन बाबूलाल को नहीं। वो गायब हो गया, जैसे धुएँ में उड़ गया हो।

कुछ लोग कहते हैं कि वो उस आग में जल गया, लेकिन कुछ का मानना है कि वो उस साये के साथ चला गया, उस अंधेरी दुनिया में, जहाँ से वो कभी वापस नहीं लौटा।

हवेली की जगह अब सिर्फ ख़ाक है, और बाबूलाल सिंह की यादें, एक डरावनी कहानी के रूप में, लोगों के दिलों में जिंदा हैं।

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